!! गर देखना है मेरी
उड़ान को
तो जरा और ऊँचा करलो आसमान को !!
भारतीय महिला क्रिकेट
टीम की कप्तान मिताली राज ने एक दिवसीय क्रिकेट मैच की दुनिया में पुराने सभी
रिकार्ड्स को ध्वस्त कर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। मगर जिस देश में क्रिकेट को धर्म माना जाता है वहां क्रिकेट
के पुजारी, पंडे, भक्तों में मुझे वैसा उत्साह, वैसी ख़ुशी खोजे नहीं मिल रही जैसी हमारे पुरुष
क्रिकेट के खिलाड़ी देवताओं के प्रति देखने को मिलती है।
क्या कारण हो
सकता है इस भेद-भाव का, ऐसी अनदेखी,
सुस्ती का? शायद महिला क्रिकेट से होने वाली कमाई इसका स्टारडम ही एक
मुख्य वजह है कि ज़्यादातर क्रिकेट प्रेमी जो किसी भी मैच के लिए ऑफिस-कॉलेज नागा कर
लेते है, अपने व्यापार की हानि
बर्दाश्त कर लेते है, ब्लैक में भी टिकट्स खरीद लेते है और रात-रात भर स्टेडियम के
बाहर लाइन में एक अदद टिकट के लिए पागलों की तरह खड़े रहते है उन्हें महिला क्रिकेट
में या यू कहें कि भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम को छोड़कर किसी भी अन्य खेल में वो चमक
नहीं दिखती जिसके वो दीवाने है। फिर बात भले महिला
क्रिकेट की हो या फिर कब्बड्डी और हॉकी की हर जगह वस्तुस्थिति कमोवेश एक सी ही है। और इन सब के पीछे जो मुख्य वजह है वो है बाकी खेल एवं
खिलाडियों का सही तरीके से प्रचार नहीं हो पाना जिसके लिए सरकार, खेल मंत्रालय, विभिन्न खेल एवं खिलाड़ी संघ एवं हर वो खेल प्रेमी जिम्मेवार
है जो भारत में खेल का मतलब सिर्फ क्रिकेट और सिर्फ सचिन, धोनी,कोहली वाला
क्रिकेट ही समझता है।
कभी पूछकर देखिए कईयों
को तो बाकी खेल के नियम खिलाड़ियों के नाम उनकी पहचान भी नहीं होगी सही से। मगर सचिन और कोहली के बीवी-बच्चे एवं कुत्ते का भी नाम पता
होगा। ताज़ा मामला ही देखिए जब ६००० रन बनाने की मुबारकबाद में
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने अपने ट्विटर पोस्ट में मिताली की जगह
किसी अन्य खिलाड़ी की फोटो पोस्ट कर मिताली राज को उनकी सफलती की वधाई दे डाली। बाद में किसी फोलोवर द्वारा कोहली को उनकी गलती बताए जाने
के बाद उन्होंने पोस्ट डिलीट कर दी। वहीँ बात अगर मिताली राज
के करियर की करें तो हम में से बहुत कम लोग ही ये जानते होंगे की मिताली ने अपने
पहले मैच में ही साल 1999 जून के महीनें
में आयरलैंड के खिलाफ 114 रनों की सफल
पारी में शानदार शतक जड़ खुद को साबित कर दिया था। साथ ही मिताली के नाम टेस्ट मैच में बनाई गई एक डबल
सेंचुरी भी दर्ज है. और अब एक दिवसीय महिला क्रिकेट मैच की दुनिया में 6000 रन बनाने का शानदार रिकॉर्ड।
ऐसे में अगर अपने
लम्बे करियर में बतौर कप्तान मिताली की सालाना फीस की करे तो वो है मात्र 15 लाख रूपये सालाना जबकि बात
अगर कप्तान कोहली की सालाना फीस की करे तो वो मिताली को मिलने वाली फीस से कई गुना
अधिक 2 करोड़ रूपये सालाना है। यानि की भेद-भाव, लापरवाही की एक
नहीं कई मजबूत दीवारें है खेल-कूद की दुनिया में भी जहां क्रिकेट को धर्म माना
जाता है दरअसल वहां क्रिकेट नहीं क्रिकेट का बस वो हिस्सा ही धर्म है जिसपर दांव
लगाया जाता है करोड़ो-अरबों का सट्टा खेला जाता है। वो क्रिकेट जिसकी चकचौंध में खिलाड़ी से लेकर खेल प्रेमी तक
और अपने ब्रांड्स प्रोडक्ट्स के प्रायोजक से लेकर हर कोई अँधेरेगर्दी में इतना डूब
चूका है की उन सबको वही दिखता है जो बिकता है या वही बिकता है जो वो दिखाते है।
हालाँकि अब कुछ
शुभ संकेत भी मिलने शुरू हो गए है भारतीय मीडिया अब इस भेद-भाव को समझने लग गया है। हमारे मीडिया का एक हिस्सा अब क्रिकेट के अलावा महिला
क्रिकेट एवं बाकी अन्य खेल –खिलाडियों के प्रति संवेदनशील हो रहा है। आप भी जागिए अगली बार जब मिताली राज या सरदार सिंह की हॉकी
टीम कोई नया खिताब जीते तो ढोल और तिरंगे के साथ उनका भी पूरी गर्मजोशी से स्वागत
कीजिये, जश्न मनाइए। क्योंकि हमें जितने पर खुश होना चाहिए न की
सिर्फ तब जब भारतीय क्रिकेट टीम के ही जीते बल्कि हर बार जब इस देश का कोई खिलाड़ी
फिर वो चाहे पुरुष हो या महिला अपने खेल से, अपनी मेहनत और हुनर से देश का नाम
रौशन करे तब। हमारा मकसद जीत होना चाहिए उसकी ख़ुशी होनी चाहिए
फिर खेल चाहे कोई भी हो उससे देश का नाम रौशन करने वाला फिर भले भारत माँ का कोई
लाल हो या फिर लाडली बेटियाँ।
#हिंदी_ब्लोगिंग
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा लिखा हैं, इस सच्चाई का सबको पता होना चाहिए कि क्रिकेट महिला कप्तान को **15लाख** सालाना और पुरुष क्रिकेट कप्तान को 2करोड़ सालाना मिलता हैं। हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी हैं उसे भी इतनी पॉपुलैरिटी नही मिली हैं,ठीक हैं सबकी अपनी पसंद होती हैं लेकिन अन्य खेलों को भी प्रसिद्धि दिलवाने के लिए कोई ना कोई कदम तो उठाना ही चाहिए।
हटाएंजी शुक्रिया नीतू जी
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