!! खूबसूरत हो तुम गुलाब सी
रंग बे-नज़ीरी का है एक ये भी !!
!! पास हो तुम दूर भी
रंग अहसास का है इक ये भी !!
!! अपनी हो तुम पराई भी
रंग रिश्तों का है इक ये भी !!
!! तमन्ना हो तुम बे-पायां सी
रंग इंतेहाई का है एक ये भी !!
!! ख्व़ाब हो तुम हक़ीकत भी
रंग तसव्वुर का है एक ये भी !!
!! साथी हो तुम रहबर भी
रंग सफ़र का है एक ये भी !!
अर्णव गोस्वामी के अलावा भी पूरे देश में ऐसे सैकड़ों पत्रकार हैं जो अपना काम बड़ी मेहनत और ईमानदारी से करते हैं। हाँ ये अलग बात है कि वो इतने रसूखदार नहीं हैं कि किसी नेता, मंत्री या राजनीतिक दल या देश की मीडिया ये मठाधीशों को उनकी चिंता हो। ताज़ा उदहारण के तौर पर याद कीजिये उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर के सामान्य से पत्रकार पवन जायसवाल को, जिसे स्थानीय प्रशासन द्वारा इसलिए प्रताड़ित किया गया, उसपर मुकदमा कर दिया गया। क्योंकि उसने अपनी एक ग्राउंड रिपोर्ट में मिडडे मील के नाम पर सरकारी स्कूल के बच्चों को नामक रोटी परोसने की घटना को उजागर किया था। न कि स्टूडियो में बैठकर कोरे आरोप लगाए थे। ऐसी स्पष्ट और साहसिक पत्रकारिकता करने वाले मीडियाकर्मी के लिए क्या किसी बड़े पत्रकार ने, मीडिया के मठाधीश ने इंसाफ दिलाने के लिए कोई पहल की ? ऐसे में अर्णव गोस्वामी का पक्ष लेने वाले पत्रकारों, नेताओं आदि को ये याद रखना चाहिए कि, अर्णव पूरे भारतीय मीडिया या भारतीय पत्रकारों का प्रतिनिधि नहीं है। साथ ही वर्तमान में वो एक बड़े मीडिया हाउस के मालिक भी हैं इसलिए इस बात से कतई इंकार नहीं किया ज
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